जंगल जंगल भटककर विजय कुमार बन गये डिप्टी कलेक्टर
अगर आपको लगता है की अब आप आगे नहीं पढ़ पायेंगे यानि अब आप आगे नहीं बढ़ पायेंगे तो प्लीज एक बार विजय कुमार देहारिया की जिन्दगी पर जरा गौर कर लें, मैं यह नहीं कह रहा की सभी की जिन्दगी में इतनी परेशानी आये पर मैं यह भी कह रहा हूँ की बिना परेशानी के कोई जीत ही नहीं सकता. जी हाँ अगर आप अपनी जिन्दगी में आगे बढना चाहते है और कुछ कर दिखाना चाहते हैं तो यह बात अपने दिलो दिमाग में ठान ले की हर मुसीबत का सामना करके मुझे अपना गोल प्राप्त करना है. आज इस सच्ची कहानी को पढने के बाद आप मोटिवेट जरुर हो जाओगे. ऐसी ही Motivation story पढने के लिए बने रहे sdatac.com के साथ.

विजय कुमार देहारिया यह नाम आज मध्य प्रदेश का सबसे ज्यादा पहचाना जाने वाला नाम है एक समय था जब विजय के पास ना तो पढने के लिए समय था और ना ही इतना पैसा की वो अपनी पढाई पूरी कर पायें पर आज वो मध्य प्रदेश के डिप्टी कलेक्टर है.
जबलपुर के लखनादौन के पास एक छोटे से कस्बे में रहने वाले विजय कहते हैं की उनके गाँव में 7 लोग पढ़े लिखे हुए है उनमे से एक उनके पिता और एक छोटे भाई है और एक वो खुद है. जी हाँ एक ऐसा गांव जहाँ कोई पढ़ा लिखा ना हो वहां की स्थिति कैसी होगी आप जान सकते हैं. विजय कहते हैं की जैसे तैसे पढाई पूरी की और जब इंजिनियरिंग करने की बात आई तो इतना पैसा नहीं था की वो पढ़ पाए.
पापा 2007 तक 22 रूपए दिहाड़ी पर बच्चों को पढाया करते थे और माँ आंगनबाड़ी में लगी हुई थी. जैसे तैसे घर का खर्च निकल जाया करता था पर अब इतने से पढाई तो नहीं होती है, अच्छे अंक और ग्रीन कार्ड की मदद से जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में उनका दाखिला हो गया और यही से उनका डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना शुरू हुआ पर कॉलेज के बाद उन्होंने 6 हजार की नौकरी की.
यह नौकरी कोई साधारण नौकरी नहीं थी उन्होंने जंगल में फ़ोरेस्ट गार्ड की नौकरी की ऐसे में वो पूरा दिन जंगल में भटकते थे और भटकते भटकते उन्होंने डिप्टी कलेक्टर बनने के तैयारी शुरू कर दी.
विजय कहते है की उन्होंने 2 बार जी लगाकर कोशिश की पर वो एग्जाम पास नहीं कर पाए पर कहते है ना की जितनी बार हम गलतियाँ करते है उतना ही हम कुछ नया सीखते है तो मैंने भी सिखा और अपनी रूटीन में कुछ बदलाव लाया और इस बार वो अपनी केटेगरी में सबसे टॉप आ गये थे.
रिजल्ट देखा तो विजय को एक बार अपनी इस जीत पर विश्वास नहीं हुआ पर कहते है ना की सच्चाई को स्वीकार करना पड़ता है और उन्होंने ऐसा किया. आज वो डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्यरत है.
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आपने मेरी रियल स्टोरी लिखी इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। यह स्टोरी किसी को मोटिवेट कर सके तो बहुत खुशी होगी।